
रांची : झारखंड का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल रिम्स (राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान) इन दिनों मरीजों की परेशानी का केंद्र बन गया है। इलाज के लिए आने वाले लोगों को यहां जांच कराने के लिए सात से दस दिनों तक का इंतजार करना पड़ रहा है। लंबी तारीख मिलने के कारण मरीज और उनके परिजन अस्पताल परिसर में ही रुकने को मजबूर हो जाते हैं।
रात के समय रिम्स परिसर में पर्ची काउंटर और जांच विभाग के पास चटाई, दरी और प्लास्टिक बिछाकर लोग सोते नजर आते हैं। मरीजों का कहना है कि इतनी दूर से आने के बाद बार-बार लौटना आर्थिक रूप से संभव नहीं है, इसलिए वे मजबूरी में अस्पताल के खुले मैदान या बरामदे में ही दिन-रात काट रहे हैं।
“सात दिन बाद अल्ट्रासाउंड, खर्च के कारण लौटना मुश्किल”
धनबाद से आए गौतम मंडल ने बताया कि उन्हें पेट में पथरी और अपेंडिक्स की आशंका है। डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड जांच लिखी, लेकिन तारीख 23 सितंबर दी गई — यानी पूरे सात दिन बाद। उनका गांव रिम्स से 270 किलोमीटर दूर है और आने-जाने में करीब 1000 रुपये प्रति व्यक्ति खर्च हो जाता है। ऐसे में वे और उनकी पत्नी अस्पताल परिसर में ही रुकने को मजबूर हैं।
“24 अगस्त को आया, 15 सितंबर को जांच, अब रिपोर्ट दिखाने का इंतजार”
पलामू से आए विश्वनाथ यादव ने बताया कि उन्हें गले में गंभीर जलन की समस्या थी। 24 अगस्त को रिम्स पहुंचे, लेकिन जांच की तारीख 15 सितंबर दी गई। जांच और रिपोर्ट में पूरा दिन निकल गया। अब डॉक्टर को रिपोर्ट दिखाने के लिए उन्हें एक और रात अस्पताल में बितानी पड़ रही है।
बढ़ती भीड़, कम सुविधाएं
रिम्स में रोजाना हजारों मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। सुविधाओं की कमी और जांच विभाग में मशीनों व तकनीशियनों की सीमित संख्या के कारण यह समस्या और गंभीर हो गई है।
सवाल यह है कि राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में जब मरीजों को इलाज के लिए ही हफ्तों इंतजार करना पड़े और उन्हें खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़े, तो ग्रामीण और दूरदराज़ के गरीब मरीजों के लिए विकल्प क्या बचता है?